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लडभड़ोल (मिन्टु शर्मा)हिम फलावर पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल लड़भडोल में आज सीनियर वर्ग का वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह आयोजित किया गया, जिसमें छठी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक के बच्चों ने भाग लिया । कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि व्यापार मंडल लड़ भडोल के प्रधान और समाजसेवी सुरेंद्र सोनी ने दीप प्रज्वलित कर किया ।

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लडभड़ोल (मिन्टु शर्मा)हिम फलावर पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल लड़भडोल में आज सीनियर वर्ग का वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह आयोजित किया गया, जिसमें छठी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक के बच्चों ने भाग लिया । कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि  व्यापार मंडल लड़ भडोल के प्रधान और समाजसेवी सुरेंद्र सोनी ने दीप प्रज्वलित कर किया ।इस अवसर पर मुख्य अतिथि का विद्यालय पर प्रांगण में पहुंचने पर हिम फ्लावर परिवार के सभी सदस्यों , बच्चों तथा अभिभावकों ने जोरदार स्वागत किया । उसके उपरांत विद्यालय के हेड बॉय और हेड गर्ल ने उनको बैज लगाकर सम्मानित किया । विद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक प्यार चंद राणा ने उनको टोपी पहनाकर सम्मानित किया ,जबकि  कार्यालय प्रभारी करतार जग्गी ने उन्हें साल पहनाकर सम्मानित किया । विद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक अंचल शर्मा और प्रधानाचार्य श्री विकास उपाध्याय ने उन्हें स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। उनकी धर्मपत्नी मधु सोनी को भी साल पहनाकर सम्मानित किया गया। उसके उपरांत विद्यालय के बच्चों ने सरस्वती वंदना, समूह गान, नाटी, एकांकी और भाषण , नारी शसक्तीकरण नाटक, कृष्ण सुदामा का संवाद ...

बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है दशहरे का पर्व!




दशहरा विजयदशमी हिंदुओं का एकप्रमुख त्योहार है। 

अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथी को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इस दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नवरात्रि एवं 10 दिन की युद्ध के उपरांत महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है। दशहरा के इलावा दो अन्य शुभ तिथियां है चैत्र शुक्ल और कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।



 जी हां रावन माता सीता का हरण किया था जिसके 
लिए उसे भगवान श्री राम के हाथों अपने प्राण गवाने पड़े और इसलिए संपूर्ण भारत में उसके पुतले जलाए जाते हैं। परंतु मध्य प्रदेश के मंदसोर में रावण की पूजा की जाती है। कहां जाता है कि मंदसोर का असली नाम दशपुर था और यह रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था। इसलिए इस शहर का नाम मंदसोर पड़ा। क्योंकि मंदसोर रावण का ससुराल था और यहां की बेटी रावण से ब्याही गई थी इसलिए यहां दामाद के सम्मान की परंपरा के कारण रावण के पुतले का दहन करने की बजाय उसे पूजा जाता है। इस दिन लोग शस्त्र पूजन करते हैं और नया कार्य आरंभ करते हैं जैसे अक्षर लेखन, नया उद्योग आरंभ करना, बीज बोना इत्यादि। लोगों का ऐसा विश्वास है जिस दिन जो कार्य आरंभ किया जाता है उसमें विजय मिलती है।



संपूर्ण भारत में जलाए जाते हैं रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले परंतु मध्य प्रदेश के मंदसोर में होती है रावण की पूजा!

हिमाचल मैं दशहरा :- 
हिमाचल के कुल्लू में अंतरराष्ट्रीय दशहरा महोत्सव मनाया जाता है जिसमें देवताओं का महा मिलन होता है। कुल्लू में मनाया जा रहा अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव अपने आप में एक पूरा 358 वर्षों का इतिहास समेटे हुए हैं। तीन शताब्दियों से यहां पर परंपराएं आज भी कायम है। इस बार दशहरा 8 से 14 अक्टूबर तक मनाया जाएगा और पूरा कुल्लू शहर देवताओं के आगमन और भव्य मिलन का गवाह बनेगा। उल्लू जिले में 2000 से अधिक छोटे बड़े देवता है लेकिन घाटी के देवता भगवान रघुनाथ है। माता हिडिम्बा मंजूरी और देवी भेखली के इशारे के बाद कुल्लू दशहरे का आगाज होता है।




 पिछले वर्ष 200 देवता इस दशहरे में आए थे लेकिन इस बार 331 देवताओं को निमंत्रण दिया गया है। भगवान रघुनाथ अपने था शिविर से छोटे रथ निकलने के बाद बड़े रथ पर विराजमान होते हैं और उसके बाद निकलने वाली शोभायात्रा के साथ यहां अंतरराष्ट्रीय दशहरे का आगाज होता है। भगवान रघुनाथ के रथ को कोई भी व्यक्ति की सकता है। दशहरे में घाटी के देवता 200 किलोमीटर दूर तक से आते हैं। कुल्लू दशहरे में प्रतिदिन शाम को राजा की शोभायात्रा निकलती है इसे राजा की जलेब कहते हैं। यह राजा के अस्थाई शिविर से निकलती है और मैदान का चक्कर लगाकर वापिस शिविर में लौटती है। जलेब में राजा को पालकी में बिठाया जाता  है जिसे सुखपाल कहते हैं। इस सुखपाल के आगे नरसिंह की घोड़ी चलाई जाती है। अलग-अलग दिन अलग-अलग घाटीयों के देवी देवता अपने वाद्य यंत्रों सहित इस जलेब में भाग लेते हैं। दशहरे के छठे दिन को मुहल्ला कहते हैं और इस दिन सभी देवी देवताओं का महा मिलन होता है। सभी देवी देवता रघुनाथ जी की शिविर में पहुंचते हैं और आपस में बड़े हर्ष उल्लास से मिलते हैं।



 उसके बाद एक एक करके देवताओं के रथ राजा की शिविर में जाकर अपनी लिखित उपस्थिति दर्ज करवाते हैं।

देवता करते हैं ट्रैफिक कंट्रोल और दो देवता रहते हैं पुलिस के पहरे में!


 भगवान रघुनाथ का रथ निकालने पर ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा पुलिस की जगह देवता ही संभालते हैं। सैंज घाटी के देवता धूमल रथ के आगे चलकर भगवान के लिए रास्ता बनाते हैं। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी जैसे का तैसा पालन किया जाता है। इसी प्रकार भगवान की शोभायात्रा में चलने के लिए देवता बालूनाग और श्रृंगा ऋषि में विवाद होता है और इसीलिए इन दोनों देवतोओं को पुलिस के पहरे में रखा जाता है। इनके विवाद को धुर विवाद कहा जाता है।



 अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के अलावा मणिकर्ण, ठाऊगा, वशिष्ठ और हरिपुर में भी दशहरे का आयोजन होता है। यहां पर भी सात दिनो तक महोत्सव चलता है। मणिकर्ण में बका इधर अभी बनाया जाता है इसमें भगवान रघुनाथ को रखा जाता है। यहां पर हालांकि देवता बड़ी संख्या में नहीं होते लेकिन परंपराओं का पालन पूरी तरह से किया जाता है।



कुल्लू दशहरे का इतिहास, क्यों मनाया जाने लगा कुल्लू में दशहरा ? सबसे पहले किसने बनाया? :-
कुल्लू के राजा जगत सिंह को किसी ने गलत सूचना दी थी कि पार्वती घाटी के टिकरी गांव के एक पंडित दुर्गा दत्त के पास मोतियों का भंडार है और वह भंडार राजा के पास होना चाहिए। राजा ने बिना सोचे समझे लोगों की बातें में आकर पंडित से उन मोतियों को लाने भेजा लेकिन उसके पास मोती नहीं थे और उसने आत्महत्या कर ली। उसके बाद राजा को कुष्ठ निकला और वह दुखी रहने लगा। इसके बाद राजा ने अपनी समस्या झिड़ी नामक स्थान पर  पयहारी बाबा नाम के सिद्ध वैष्णव संत को बताई। राजा को ब्रम्ह हत्या का पश्चाताप करने के लिए अयोध्या से भगवान रघुनाथ को लाने के लिए कहा। फिर अयोध्या से भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति अत्यन्त भव्य यात्रा के साथ कुल्लू लाई गई। राजा इसके बाद ठीक हो गया और तब से ही यहां पर दशहरे का आयोजन शुरू हुआ।



 इस दिन जगह जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है और रावण का पुतला जलाया जाता है। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व 10 प्रकार के पापों जैसे काम, क्रोध, लोभ, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सदप्रेरणा देता है।

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